mata ke daag kaise hataye : चेचक के दाग: स्त्रियों के चेहरे पर चेचक के दाग़ों का होना एक अभिशाप समझा जाता है । चेचक के दाग़ों को श्रृंगार द्वारा घटाया अथवा छिपाया जा सकता है। चेचक के दाग दो विधियों से ठीक हो सकते है । प्लास्टिक सर्जरी द्वारा अथवा स्किन पीलिंग द्वारा ।प्लास्टिक सर्जरी :- इस सर्जरी द्वारा आमतौर पर विदेशों में उपचार किया जाता है । यह उपचार अत्यंत महंगा होने के कारण हमारे देश में इसका विशेष प्रचलन नहीं है । इस सर्जरी से चेहरे की त्वचा पर छोटे-छोटे अनेक आपरेशन होने के कारण रोगी को काफी तकलीफ सहनी पड़ती है । यह उपचार हमेशा किसी योग्य सर्जन से ही करवाना चाहिये । स्किन पीलिंग :- इस विधि द्वारा उपचार के लिये रोगी के चेहरे पर अनेक प्रकार के लेप लगाए जाते है । हर लेप के बाद त्वचा पर से एक परत उतार कर तुरंत दूसरी परत लगाएं । ऐसा 5-6 बार करें । आप देखेंगे कि हर परत के उतरनें के बाद दाग की गहराई कम होने लगती है । इस प्रक्रिया को कई बार दोहराने के बाद त्वचा बेदाग हो जाती है । लेप त्वचा के अनुसार प्रयोग करना चाहिये ।
कान का मवाद: |
अंतःकर्ण की रचनाओं में विकार आने पर प्रमुखतः चक्कर आना, चलने में परेशानी एवं उल्टी होना या उल्टी होने की इच्छा होना तथा विभिन्न प्रकार की आवाजें कान में आना जैसे लक्षण सामने आते हैं। कान के प्रत्येक अंग की सामूहिक ठीक क्रिया के द्वारा मनुष्य ठीक प्रकार से सुनता है। इन अंगों में से कान के पर्दे से लेकर मध्य कर्ण एवं अंतःकर्ण के अंगों में विकार होने पर विभिन्न प्रकार की श्रवणहीनता की स्थिति उत्पन्न होती है। सामान्यतः कान से मवाद आने को मरीज गंभीरता से नहीं लेता, इसे अत्यंत गंभीरता से लेकर विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श एवं चिकित्सा अवश्य लेना चाहिए अन्यथा यह कभी-कभी गंभीर व्याधियों जैसे मेनिनजाइटिस एवं मस्तिष्क के एक विशेष प्रकार के कैंसर को उत्पन्न कर सकता है। कान में मवाद किसी भी उम्र में आ सकता है, किंतु प्रायः यह एक वर्ष से छोटे बच्चों या ऐसे बच्चों में ज्यादा होता है जो माँ की गोद में ही रहते हैं। तात्पर्य स्पष्ट है जो बैठ नहीं सकते या करवट नहीं ले सकते। कान से मवाद आने का स्थान मध्य कर्ण का संक्रमण है। मध्य कर्ण में सूजन होकर, पककर पर्दा फटकर मवाद आने लगता है। मध्य कान में संक्रमण पहुँचने के तीन रास्ते हैं, जिसमें 80-90 प्रश कारण गले से कान जोड़ने वाली नली है। इसके द्वारा नाक एवं गले की सामान्य सर्दी-जुकाम, टांसिलाइटिस, खाँसी आदि कारणों से मध्य कर्ण में संक्रमण पहुँचता है। बच्चों की गले से कान को जोड़ने वाली नली चूँकि छोटी एवं चौड़ी होती है, अतः दूध पिलाने वाली माताओं को हमेशा बच्चे को गोद में लेकर अंतःकर्ण की रचनाओं में विकार आने पर प्रमुखतः चक्कर आना, चलने में परेशानी एवं उल्टी होना या उल्टी होने की इच्छा होना तथा विभिन्न प्रकार की आवाजें कान में आना जैसे लक्षण सामने आते हैं सिर के नीचे हाथ लगाकर, सिर को थोड़ा ऊपर उठाकर ही बच्चे को दूध पिलाना चाहिए। ऐसी माताएँ जो लेटे-लेटे बच्चो को दूध पिलाती हैं उन बच्चों में भी कान बहने की समस्या उत्पन्न होने की ज्यादा आशंका रहती है। आयुर्वेदीय दृष्टि से सर्दी-जुकाम आदि हों तो निम्न उपाय तत्काल प्रारंभ कर देना चाहिए। सरसों के तेल को गर्म कर पेट, पीठ, छाती, चेहरे, सिर पर सुबह-शाम मालिश कर दो-दो बूँद सरसों तेल नाक के दोनों छिद्रों में डालना चाहिए। एक कप पानी उबालकर उसमें चुटकीभर नमक डालकर छानकर रखें तथा यह नमक मिला पानी ड्रॉपर से नाक में 2-2 बूँद 3-4 बार डालना चाहिए, जिससे नाक तत्काल खुल जाती है। संजीवनी वटी (125 मिग्रा), छः माह से छोटे बच्चों को चौथाई गोली सुबह-शाम तथा छः माह से एक वर्ष के बच्चों को आधी-आधी गोली सुबह-शाम शहद एवं अदरक के रस के साथ मिलाकर देने से सर्दी ठीक होती है। सर्दी-जुकाम ही बच्चों में कान बहने का एक प्रमुख कारण है, अतः उसकी चिकित्सा परम आवश्यक है। यदि कान बहने ही लगें तो-साफ रुई लगी काड़ी से कान को दिन में तीन-चार बार साफ कर गुलाब जल या समुद्र फेन चूर्ण कान में डालते हुए सर्दी-जुकाम आदि हेतु वर्णित चिकित्सा भी अवश्य करना चाहिए। प्रायः 10-15 दिनों में कान बहना बंद होकर कान का पर्दा भी फिर सेजुड़ जाता है, किंतु बारम्बार जुकाम या अन्य कारणों से कान बहे तो कान के पर्दे का यदि अधिकतर भाग नष्ट हो जाए तो बच्चे की सुनाई देने की क्षमता प्रभावित होकर बहरापन भी उत्पन्न होता है, अतः छोटे बच्चे जो बैठ नहीं सकते, उनकी सर्दी-जुकाम आदि की चिकित्सा तुरंत कराते हुए सावधानी रखना चाहिए। |
स्वप्नदोष: |
दूसरा कारण होता है कब्ज होने से मलाशय में मल सड़ना। स्वप्नदोष के रोगी को दो बातों का खयाल रखना चाहिए, एक तो दिमाग साफ रखना और दूसरा पेट साफ रखना। दिमाग में यौन विषय का विचार तक न आने दें, कामुक चिंतन-मनन करना तो बहुत दूर की बात है। हमेशा दिमाग को अच्छे कामों और विचारों में उलझाए रखें, ताकि गंदे और यौन संबंधी कोई भी विचार आ ही न सकें, यही दिमाग साफ रखना कहलाता है। कब्ज से बचने के लिए अपच से बचें। ये दोनों उपाय करते रहें तो बिना दवा सेवन किए भी स्वप्नदोष होना सदा के लिए बंद हो जाएगा, यह तो हुआ बगैर दवा का इलाज। इस प्रकार की व्याधि के लिए आयुर्वेदिक तरीके से इलाज का तरीका व दवा का परिचय यहां दिया जा रहा है (1) पालक के पत्ते लगभग 250 ग्राम पानी से खूब धोकर सिल पर बिना पानी के पीस लें। एक मोटे साफ धुले हुए कपड़े को पानी में भिगोकर खूब अच्छी तरह निचोड़ लें, ताकि कपड़े में पानी न रहे। अब इसमें पिसी हुई पालक रखकर कपड़े को दबा-दबाकर पालक का रस एक कप में टपकाएं। सुबह खाली पेट यह रस, दन्त मंजन करने के बाद पी लें और आधा घंटे तक कुछ खाएं-पिएं नहीं। यह प्रयोग रोजाना 6-7 दिन तक करने से स्वप्नदोष होना बंद हो जाता है। यह एक आयुर्वेदिक परीक्षित नुस्खा है। (2) नीम गिलोय के अंगुलभर आकार के तीन टुकड़े और तीन काली मिर्च सिल पर रखकर कूट-पीसकर खूब बारीक कर लें। इसे सुबह खाली पेट पानी के साथ पिएं। जब स्वप्नदोष होना बिलकुल बंद हो जाए, तब इसका सेवन करना बंद कर दें। |
स्वाइन फ्लू: |
थायमॉल, मेंथॉल, कैंफर (कपूर) को बराबर मात्रा में मिला कर तैयार ‘यू वायरल’ के घोल की बूँदों को अगर रुमाल या टिश्यू पेपर पर डालकर लोग सूंघें तो भीड़ में मास्क पहन कर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पान के पत्ते पर दवा की तीन बूँदें डालकर 5 दिन तक दिन में दो बार खाने पर स्वाइन फ्लू से बचाव हो सकता है। 100 मि.ली. पानी में तीन ग्राम नीम, गिलोय, चिरैता के साथ आधा ग्राम काली मिर्च और एक ग्राम सोंठ का काढ़ा बना कर पीना भी काफी लाभदायक रहता है। इन चीजों को पानी के साथ तब तक उबालना है जब तक वह 60 मिली ग्राम न रह जाए। इसे एक सप्ताह के लिए रोज सुबह खाली पेट पीने पर स्वाइन फ्लू से लड़ने के लिए शरीर में जरूरी परिरक्षण क्षमता (इम्यूनिटी) पैदा हो जाएगी। त्रिफला, त्रिकाटू, मधुयास्ती और अमृता को समान मात्रा में लेकर उसे एक चम्मच लेने से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इससे बुखार भी कम होता है। इस दवा को खाना खाने के बाद दो बार लेने से फायदा होगा। |
अस्थमा: |
अस्थमा और एलर्जी पीड़ितों के लिए यह माह थोड़ा खतरनाक होता है। क्योंकि बारिश के बाद सितंबर में धूल उड़ती है। बारिश के कीटाणुओं को फैलने-पनपने का मौका मिल जाता है। यूं भी वातावरणीय कारकों से फैल रही एलर्जी के कारण अस्थमा के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके साथ बदलती जीवनशैली और प्रदूषण के कारण भी अस्थमा और एलर्जी के मरीज बढ़ रहे हैं। कुछ आयुर्वेदिक औषधियां और घरेलू नुस्खे इसमें काफी राहत देते हैं। क्या होता है अस्थमा श्वास नलियों में सूजन से चिपचिपा बलगम इकट्ठा होने, नलियों की पेशियों के सख्त हो जाने के कारण मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है। इसे ही अस्थमा कहते हैं। अस्थमा किसी भी उम्र में यहां तक कि नवजात शिशुओं में भी हो सकता है। अस्थमा : यह हैं लक्षण बार-बार होने वाली खांसी सांस लेते समय सीटी की आवाज छाती में जकड़न दम फूलना खांसी के साथ कफ न निकल पाना बेचैनी होना बचाव ही सर्वोत्तम उपाय धूल, मिट्टी, धुआं, प्रदूषण होने पर मुंह और नाक पर कपड़ा ढ़कें। सिगरेट के धुएं से भी बचें। ताजा पेन्ट, कीटनाशक, स्प्रे, अगरबत्ती, मच्छर भगाने की कॉइल का धुआं, खुशबूदार इत्र आदि से यथासंभव बचें। रंगयुक्त व फ्लेवर, एसेंस, प्रिजर्वेटिव मिले हुए खाद्य पदार्थों, कोल्ड ड्रिंक्स आदि से बचें। दमा में कारगर जड़ी-बूटियां वासा- यह सिकुड़ी हुई श्वसन नलियों को चौंड़ा करने का काम करती है। कंटकारी– यह गले और फेंफड़ों में जमे हुए चिपचिपे पदार्थों को साफ करने का काम करती है। पुष्करमूल- एंटीहिस्टामिन की तरह काम करने के साथ एंटीबैक्टीरियल गुण से भरपूर औषधि। यष्टिमधु– यह भी गले को साफ करने का काम करती है। |
चक्कर आने पर: |
कभी-कभी किसी को चक्कर आते हैं, बैठे रहने के बाद उठने पर आँखों के सामने अंधेरा छा जाता है और चक्कर आते हैं। इस स्थिति में एक सफल सिद्ध नुस्खा प्रस्तुत है। एक कड़वी, सूखी, लम्बी या गोल लौकी या तुम्बी जो पकने के बाद अपने आप सूख चुकी हो, लेकर इसे डण्ठल की तरफ से काट दें, ताकि अन्दर का पोला (खोखलापन) दिखाई दे। इसके अन्दर बीज या सूखा गूदा हो तो हिला-हिलाकर गिरा दें। इसमें ऊपर तक पानी भर कर 12 घण्टे तक रखें फिर हिलाकर पानी निकाल कर साफ कपड़े से दो बार छान लें। इस पानी को ऐसे बर्तन में भरें, जिसमें अपनी नाक डुबो सकें। नाक डुबोकर खूब जोर से साँस खींचें, ताकि पानी नाक से अन्दर चढ़ जाए। दिनभर नाक से पानी टपकता रहेगा। पानी खींचने के बाद नाक नीची करके आराम करें। इस उपाय से यह व्याधि सदा के लिए नष्ट हो जाती है। |
माता के दाग कैसे हटाएं – अस्वीकरण (Disclaimer) हिंदी में:
यह जानकारी केवल शैक्षणिक और सामान्य जानकारी के उद्देश्य से दी गई है। माता (चेचक) के दागों का इलाज व्यक्ति की त्वचा की प्रकृति, दाग की गहराई और स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करता है। किसी भी घरेलू उपाय या दवा को अपनाने से पहले त्वचा रोग विशेषज्ञ (Dermatologist) से परामर्श अवश्य लें।हम किसी भी प्रकार के घरेलू उपाय, क्रीम, या दवा के उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। यह जानकारी चिकित्सकीय सलाह का विकल्प नहीं है। अगर आप चाहें तो इसके लिए प्राकृतिक उपाय, डॉक्टरी ट्रीटमेंट, या स्किन केयर रूटीन भी प्रदान किया जा सकता है।