प्राकृतिक उपचार: दांत दर्द, मिर्गी और हिस्टीरिया के आयुर्वेदिक नुस्खे:Natural Healing: Ayurvedic Remedies for Toothache, Epilepsy & Hysteria

Natural Healing: Ayurvedic Remedies for Toothache, Epilepsy & Hysteria : दांत दर्द के लिए कारगर उपचार 10 ग्राम बायविडंग और 10 ग्राम सफेद फिटकरी थोड़ी कूटकर तीन किलो पानी में उबालें। एक किलो बचा रहने पर छानकर बोतल में भरकर रख लें। तेज दर्द में सुबह तथा रात को इस पानी से कुल्ला करने से दो दिन में ही आराम आ जाता है। कुछ अधिक दिन कुल्ला करने से दाँत पत्थर की तरह मजबूत हो जाते हैं। अमरूद के पत्ते के काढ़े से कुल्ला करने से दांत और दाढ़ की भयानक टीस और दर्द दूर हो जाता है। प्रायः दाढ़ में कीड़ा लगने पर असहय दर्द उठता है। काढ़ा तैयार करने के लिए पतीले में पानी डालकर उसमें अंदाज से अमरूद के पत्ते डालकर इतना उबालें कि पत्तों का सारा रस उस पानी में मिल जाए और वह पानी उबाले हुए दूध की तरह गाढ़ा हो जाए। दांत-दाढ़ दर्द में अदरक का टुकड़ा कुचलकर दर्द वाले दांत के खोखले भाग में रखकर मुंह बंद कर लें और धीरे-धीरे रस चूसते रहें। फौरन राहत महसूस होगी।

मिरगी:

1 तिलों के साथ लहसन खिलाएं। इससे वात का मिरगी रोग धीरे-धीरे जाता रहता है।

2 दूध के साथ शतावरी खाने से साधारण पित्त का मिरगी रोग दूर होता है।

3 शहद में ब्राह्मी का रस मिला कर लेने से कफ का मिरगी रोग ठीक हो जाता है।

4 राई और सरसों को गो मूत्र में पीस कर शरीर पर लेप करें। इससे हर प्रकार की मिरगी में लाभ मिलता है।

5 मीठे अनार के रस में मिस्री मिला कर पिलाने से बेहोशी दूर होती है।

6 नींबू के साथ हींग चूसने से मिरगी का दौरा नहीं पड़ता।

7 अकरवारा को सिरके मे मिला कर शहद के साथ प्रतिदिन प्रातः काल चाटने से मिरगी दूर होती है।

8 लहसुन की कलियों को दूध में उबाल कर पीने से पुरानी मिरगी भी दूर हो जाती है।

9 लहसुन कूट कर सुंघाने से मिरगी के दौरे की बेहोशी दूर होती है।

10वच को बारीक पीस कर ब्राह्मी अथवा शंखाहुली के रस, या पुराने गुड़ के साथ लें, तो मिरगी रोग में आराम मिलता है।

11 पीपल, चित्रक, पीपरामूल, त्रिफला, चव्य, सौंठ वायविडंग, सेंधा नमक, अजवायन, धनिया, सफेद जीरा, सभी को बरा बर मात्रा में पीस कर चूर्ण बना लें और सुबह-शाम पानी के साथ लेने से मिरगी रोग में लाभ होता है।

सावधानियां

मिरगी के रोगी को प्रायः सभी प्रकार के नशों को त्याग देना चाहिए। उसे चाय-काफी, उत्तेजक द्रव्य, मांसाहारी भोजन से बिलकुल दूर रहना चाहिए और सोने से दो घंटे पूर्व भोजन कर लेना चाहिए। विवाहित स्त्री-पुरुषों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और अविवाहित स्त्री-पुरुष कृत्रिम मैथुन से बचें। उन्हें रोग पैदा करने वाले सभी मूल कारणों से बचना चाहिए, जैसे कब्ज, थकान, तनाव और मनोविकार।

हिस्टीरिया : मनोरोग का प्रकोप:

सर्वप्रथम एरंड तेल में भुनी हुई छोटी काली हरड़ का चूर्ण ५ ग्राम प्रतिदिन लगातार दे कर उसका उदर शोधन तथा वायु का शमन करें।सरसों, हींग, बालवच, करजबीज, देवदाख मंजीज, त्रिफला, श्वेत अपराजिता मालकंगुनी, दालचीनी, त्रिकटु, प्रियंगु शिरीष के बीज, हल्दी और दारु हल्दी को बराबर-बराबर ले कर, गाय या बकरी के मूत्र में पीस कर, गोलियां बना कर, छाया में सुखा लें। इसका उपयोग पीने, खाने, या लेप में किया जाता है। इसके सेवन से हिस्टीरिया रोग शांत होता है।

लहसुन को छील कर, चार गुना पानी और चार गुना दूध में मिला कर, धीमी आग पर पकाएं। आधा दूध रह जाने पर छान कर रोगी को थोड़ा-थोड़ा पिलाते रहें।ब्रह्मी, जटामांसी शंखपुष्पी, असगंध और बच को समान मात्रा में पीस कर, चूर्ण बना कर, एक छोटा चम्मच दिन में दो बार दूध के साथ सेवन करें। इसके साथ ही सारिस्वतारिष्ट दो चम्मच, दिन में दो बार, पानी मिला कर सेवन करें।ब्राह्मी वटी और अमर सुंदरी वटी की एक-एक गोली मिला कर सुबह तथा रात में सोते समय दूध के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।

जो रोगी बालवच चूर्ण को शहद मिला कर लगातार सवा माह तक खाएं और भोजन में केवल दूध एवं शाश का सेवन करे, उसका हिस्टीरिया शांत हो जाता है।अगर रोगी कुंवारी लड़की है, तो उसकी जल्द शादी करवा देनी चाहिए। रोग अपने आप दूर हो जाएगा।

निष्कर्ष :

प्राकृतिक और आयुर्वेदिक उपचार, यदि सही तरीके से और नियमित रूप से किए जाएं, तो वे कई बार एलोपैथिक दवाओं से अधिक प्रभावी और सुरक्षित साबित होते हैं। दांत दर्द, मिर्गी और हिस्टीरिया जैसे जटिल रोगों के लिए भी हमारे पारंपरिक नुस्खों में चमत्कारी समाधान छिपे हैं। बायविडंग, फिटकरी, अमरूद के पत्ते, अदरक, लहसुन, ब्राह्मी, वच और अन्य जड़ी-बूटियों से बने ये उपाय न केवल लक्षणों में राहत देते हैं, बल्कि रोग की जड़ तक जाकर उपचार करते हैं। साथ ही, इन रोगों से जूझ रहे व्यक्ति को खानपान, जीवनशैली और मानसिक स्थिति पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।

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